गुरुवार, 2 मार्च 2017

जब चमड़े की चप्पल में खुशवंत सिहं के लिटफेस्ट में पहुंच गए थे ओमपुरी

जब चमड़े की चप्पल में खुशवंत सिहं
के लिटफेस्ट में पहुंच गए थे ओमपुरी
(दरबान ने अंग्रेजों के जमाने के ड्रेस कोड का हवाला देकर नहीं दी एंट्री)

 सफेद बाल। चेहरे में रूखापन। भारी और कड़क आवाज में बेबाकपन। सोचा था कि भारतीय सिनेमा के रूपहले पर्दे पर आक्रोश, तमस और अर्धसत्य जैसी संजीदा और गंभीर अदाकरी निभाने वाले पदमश्री ओमपुरी रीयल जिंदगी में भी वैसे ही होंगे, लेकिन वह निकले गजब के हंसोड़। और सादगी भी इस तरह की पहली ही नजर में धाकड़ के साथ साथ फक्कड़ शख्सियत नजरों में उतर आए। इस महान कलाकार से मेरीे पहली और आखिरी मुलाकात भी अजीब और कभी ना भूलने वाली रही। जब वर्ष २०१५ में सदी के महान लेखक खुशवंत के चौथे साहित्यक सम्मेलन मेंं वह अंग्रेजशाही के नियमों वाले कसौली क्लब में चमड़े की चप्पलों, पैंट से बाहर निकली शर्ट में आ पहुंचे और अंग्रेजों के समय से चल रहे ड्रेस कोड के नियमों का हवाला देते हुए पदमश्री कलाकार को एंट्री नहीं दी गई। वह हक्के बक्के रह गए। एंट्री तब मिली जब वह सूट बूट में जैंटलमेन बनकर आए। 
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..जब बोला पहले जूते पहनकर आओ। शुक्रवार ०९ अक्तूबर २०१५। हिमाचल की खुबसूरत वादियों में सदी के महान लेखक खुशवंत सिंह लिटफेस्ट का आगाज दोपहर दो बजे के करीब होना था। पाकिस्तान के मेहमान मेहर तरार, फारूख एजाजुदीन के अलाव भारतीय साहित्यकार व निर्देशक गोविंद नहलानी, केतन आनंद, पम्मी सिंह जैसी हस्तियों का साक्षात्कार और कवरेज के मकसद से सुबह १० बजे ही कसौली क्लब के गेट पर डेरा जमा लिया। उस वक्त दरबान के अलावा स्टाफ के कुछ चुनिंदा लोग ही थे, जबकि अंदर अभी मंच सज रहा था। इतने में ही एक दनदनाती हुई सफेद रंग की इन्नोवा गेट पर रूकी और अचानक ओमपुरी बाहर निकले।
उन्हे मौजूद लोगों ने पहचान लिया। सलेटी रंग की पैंट से चैकदार कमीज बाहर निकली हुई और पैरों में चप्पल। आंखो में खुमारी और आवाज में अभी तक सुरूर। पूछने लगे कि लिटफेस्ट यहीं है। अदब से उन्हें कसौली क्लब के मुख्यद्वार का रास्ता दिखादिया। लेकिन वहां तैनात दरबान ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। कहा गया कि चाहे कोई भी हो ड्रेस कोड के बगैर अंदर एंट्री नहीं मिलेगी। पहले चमड़े के जूते पहनने के अलावा फार्मल शर्ट और जैकेट पहनकर आओ तब एंट्री मिलेगी। अंगे्रजों के जमाने से कसौली क्लब के यही नियम है, जिसकी पालना करनी होगी। तब ओमपुरी के शब्द थे कि....अपां ता पूरी उम्र चप्पल ते बूशर्ट पेन के फक्कड़ वांगू कट दित्ती है, तुसी कैंदे ओ ते जूते पा के आ जादें न।
रंगीन शाम में जब माइक मिलता तो पीछे नहीं रहत
उसी शाम करीब सात बजे साहित्यम मंच पर प्रसिद्ध निर्देश पहलाज निहलानी के साथ मेकिंग आफ तमस को लेकर डिस्कशन थी। काले रंग की बास्केट, लाइनों वाली सफेद और लाल रंग वाली कमीज और करीज बनी पैंट पहनकर वह मंच पर पहुंचे। चर्चा के बाद मौका था काकटेल डिनर के साथ साथ विक्रजीत साहनी की सुफी इवनिंग का। देर रात जब पार्टी पूरे शवाब पर थी तो सूफीयाना शाम के बीच में गट्टक्कर उन्होंने माइक पकड़ा और सूट बूट वाले होने के अंदाज से निकलकर पंजाबी में सभी को एडरस करते हुए गीत गुनगुनाने लग गए। दो दिन ०९ और १० अक्तूबर तक वह कसौली में रहे। इस दौरान उन्होंने अपने किसी फैन को नाराज नहीं किया। जबकि गंभीर प्रश्रों को भी वह कई मजाकिया अंदाज में ले जाते।
...जब जाते वक्त ले गए १० अक्तूबर का पेपर
यह सुखद था। अगले दिन अख़बार के पहले पन्ने पर टॉप बॉक्स स्टोरी कवर हुई। हैडलाइन था,,,ड्रेस कोड ना होने पर ओमपुरी को अंदर जाने से रोका.. खुशवंत सिंह के साहित्यिक मंच से रुखसत लेते रिसेप्शन से बोले केड़े पेपर च है मैनु रोकन वाला एपिसोड पूरा न्यूज़ पेपर अपने साथ ले गए।

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