इस मौसम में मंडी-कांगणीधार-मझवाड़-कोटमोरस-धुआंदेवी ट्रैक की बात ही अलग है। घने जंगल। हरे पत्तों से लदे विशालकाय पेड़ और उनमें से छनकर निकलती ताजा हवा मानो संगीत सुना रही हो। पक्षियों की चहचहाहट प्रकृति के इस संगीत को लयबद्ध करने में कसर नहीं छोड़ती। साइकिल चलाते वक्त मेरे कानों में हमेशा ब्लूटूथ या बड़े हैडफोन रहते हैं। परंतु इस ट्रैक में नहीं। सच में प्रकृति ने तसल्ली से इन पहाड़ों की रचना की है। रविवार को मूड था कि कांगणीधार से जाकर वापिस आ जाऊंगा। कांगणी हैलीपेड पर कुछ दोस्त भी मिल गए। वहां धुंध ने पहाड़ों के बीच रास्ता तैयार किया था।
सोचा मझवाड़ वाले रास्ते से होते हुए सौली खड्ड उतर जाऊंगा। लेकिन प्रकृति और मौसम मेहरबान था। साथी आगे निकल गए और धुंध से लिपटे रास्ते में हम भी मजे से चलते रहे। कुछ दूरी पर धुंध की चादर हटी और ताजगी भरी हरियाली ने रूह और दिमाग को वश में कर लिया। इसी बीच पिछली सर्दियों की याद आ गई, कुछ ऐसा ही खुशगवार मौसम था जब हम धुआंदेवी ट्रैक नजदीक से चूक गए थे। दरअसल किसी दोस्त की साइकल खराब हो गई थी, इसलिए वापिस आना पड़ा। तभी विचार कौंधा आज क्यों नहीं? बस फिर क्या, सनक आ गई, धुअंदेवी तक पहुंचने की। इस हसरत को लिए हम अकेेले ही निकल पड़े। दोस्त भी पीछे छूट गए पर साइकल नहीं।
करीब 50 किमी का ट्रैक अकेले किया। पर यकीन मानिए पूरे सफर में एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगा कि आपका नेचर से कनेक्शन टूटा हो। हालांकि चढ़ाई ने शरीर से धुआं निकाल दिया। कुछ चढ़ाई सत्तर से अस्सी डिग्री वाली थी।
वहां शरीर से ऐसी भाप निकल रही थी कि जैसे रोडियेटर गर्म होने पर कार के बोनट से भाप निकलती हो। जैसे तैसे मां के दरबार तक पहुंचे। सच में बेहद ही खूबसूरत स्थान पर मां धुआंदेवी विराजमान है। करीब एक घंटे तक वहां रूका, लेकिन वहां से आने का मन नहीं कर रहा था।
सुबह साढ़े छह बजे से लेकर दोपहर तीन बजे तक इन्हीं वादियों का लुत्फ उठाया और + वाइब लेकर वापिस लौट आए।
सोचा मझवाड़ वाले रास्ते से होते हुए सौली खड्ड उतर जाऊंगा। लेकिन प्रकृति और मौसम मेहरबान था। साथी आगे निकल गए और धुंध से लिपटे रास्ते में हम भी मजे से चलते रहे। कुछ दूरी पर धुंध की चादर हटी और ताजगी भरी हरियाली ने रूह और दिमाग को वश में कर लिया। इसी बीच पिछली सर्दियों की याद आ गई, कुछ ऐसा ही खुशगवार मौसम था जब हम धुआंदेवी ट्रैक नजदीक से चूक गए थे। दरअसल किसी दोस्त की साइकल खराब हो गई थी, इसलिए वापिस आना पड़ा। तभी विचार कौंधा आज क्यों नहीं? बस फिर क्या, सनक आ गई, धुअंदेवी तक पहुंचने की। इस हसरत को लिए हम अकेेले ही निकल पड़े। दोस्त भी पीछे छूट गए पर साइकल नहीं।
करीब 50 किमी का ट्रैक अकेले किया। पर यकीन मानिए पूरे सफर में एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगा कि आपका नेचर से कनेक्शन टूटा हो। हालांकि चढ़ाई ने शरीर से धुआं निकाल दिया। कुछ चढ़ाई सत्तर से अस्सी डिग्री वाली थी।
वहां शरीर से ऐसी भाप निकल रही थी कि जैसे रोडियेटर गर्म होने पर कार के बोनट से भाप निकलती हो। जैसे तैसे मां के दरबार तक पहुंचे। सच में बेहद ही खूबसूरत स्थान पर मां धुआंदेवी विराजमान है। करीब एक घंटे तक वहां रूका, लेकिन वहां से आने का मन नहीं कर रहा था।
सुबह साढ़े छह बजे से लेकर दोपहर तीन बजे तक इन्हीं वादियों का लुत्फ उठाया और + वाइब लेकर वापिस लौट आए।
बहुत ही खूबसूरत
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