पिस्तौल
और बम कभी इन्कलाब नहीं लाते, बल्कि इन्कलाब की तलवार, विचारों और हौसलों
की सान पर तेज होती है! इंकलाबी भगत सिंह की तरह पंजाब की मिट्टी से कोई
दूसरा नहीं निकलेगा। बिलकुल सही है। लेकिन बंत सिंह का भी कोई मेल नहीं।
जालिमों ने दोनो बाजू और पैर काट दिए हैं। लेकिन मजबूत हौसले को नहीं काट
सके।
आज उसी बंत सिंह को सुनने, देखने और बात करने का मौका मिला। और लेखक खुशवंत सिंह के लिटफेस्ट के अंतिम दिन पंजाब का अनपढ़ रीयल हीरो बंत सिंह अंतराष्ट्रीय राष्ट्रीय साहित्यकारों, शिक्षाविदों और लेखकों में शीर्ष और अहम जगह बना गया।
.........यह सच्ची कहानी हौसले की है। जिंदगी से हार ना मानकर दुश्मन को उसके किए की सजा देने की। जो ऊंचे कुल की आड़ में महिलाओं बच्चियों के दुराचार को अपना शौक मानते हैं और रुपयों के वजन से उनकी जुबान सिलने को अपना वर्चस्व। मेरी दोनो बाजूएं काट दी, एक पैर काट गया। लेकिन मेरी जुबान नहीं काट पाए और आज मेरी नाबालिग बेटी के बलात्कारी ऊंचे कुल के लड़के सलाखों के पीछे हैं। भगत सिंह की तरह इंकलाबी हूं, जब तक जिंदा हूं खुद्दारी और जुल्म न सहने की प्रवृति से जिऊंगा। बंत सिंह की जुबान से निकले शब्द आज पंजाब की जानी मानी बुलंद आवाज बन चुके हैं।
निरूपमा द्वारा उन पर लिखी किताब द बैलेड आफ बंत सिंह किताब की चर्चा के दौरान बंत सिंह ने बताया कि उनकी बेटी का रेप ऊंचे कुल के लड़कों ने किया। इस के खिलाफ उठाई। उसे दस लाख और कई कीले जमीन की पेशकश की गई। वह नहीं माना। उसने कानूनी लड़ाई जारी रखी। उसका कास्मेटिक्स बेचने का कारोबार तबाह कर दिया। उसके बाद भी जब आवाज ना दबी तो उसे बेरहमी दोनों बाजूओं और एक पैर को जख्मी कर खेतों में फैंक दिया। लोहड़ी का त्योहार होने की वजह से उसे किसी ने देखा नहीं। उसे अस्पताल में ले जाने में देरी हो गई। गैंगरीन के कारण उसके एक पैर को काटना पड़ा।
जब बंत सिंह अस्पताल में चिकित्सक ने बंत सिंह को कहा कि उसकी दोनो बाजूएं और टांग नहीं रही तो वह मुस्कु रता रहा और जिंदगी से कभी ना हार मानने वाला गीत गाता रहा। उसके बाद भी लड़ाई तब तक जारी रखी जब तक उन्हें सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा दिया। इस हादसे के बाद उसकी बेटी का विवाह उससे बेहतर परिवार में हुआ। अब उस महिला के तीन बच्चे हैं। बंत में गजब का सिंगिंग और कविताएं बनाने का टैलेंट, लेकिन वह अनपढ़ है। उसके बाद कई संस्थाओं ने उसे पढ़ाने की पेशकश की। लेकिन उसका कहना था कि वह उस कुल से है, जहां नानक ने भी पढ़ाई करने से मना कर दिया। कहा कि यहां कहावत है कि कल्लू तेरा पुत रब्ब ने पढ़ाया। मतलब संघर्ष ने ही उसे पढ़ाया।
......आतुर
आज उसी बंत सिंह को सुनने, देखने और बात करने का मौका मिला। और लेखक खुशवंत सिंह के लिटफेस्ट के अंतिम दिन पंजाब का अनपढ़ रीयल हीरो बंत सिंह अंतराष्ट्रीय राष्ट्रीय साहित्यकारों, शिक्षाविदों और लेखकों में शीर्ष और अहम जगह बना गया।
.........यह सच्ची कहानी हौसले की है। जिंदगी से हार ना मानकर दुश्मन को उसके किए की सजा देने की। जो ऊंचे कुल की आड़ में महिलाओं बच्चियों के दुराचार को अपना शौक मानते हैं और रुपयों के वजन से उनकी जुबान सिलने को अपना वर्चस्व। मेरी दोनो बाजूएं काट दी, एक पैर काट गया। लेकिन मेरी जुबान नहीं काट पाए और आज मेरी नाबालिग बेटी के बलात्कारी ऊंचे कुल के लड़के सलाखों के पीछे हैं। भगत सिंह की तरह इंकलाबी हूं, जब तक जिंदा हूं खुद्दारी और जुल्म न सहने की प्रवृति से जिऊंगा। बंत सिंह की जुबान से निकले शब्द आज पंजाब की जानी मानी बुलंद आवाज बन चुके हैं।
निरूपमा द्वारा उन पर लिखी किताब द बैलेड आफ बंत सिंह किताब की चर्चा के दौरान बंत सिंह ने बताया कि उनकी बेटी का रेप ऊंचे कुल के लड़कों ने किया। इस के खिलाफ उठाई। उसे दस लाख और कई कीले जमीन की पेशकश की गई। वह नहीं माना। उसने कानूनी लड़ाई जारी रखी। उसका कास्मेटिक्स बेचने का कारोबार तबाह कर दिया। उसके बाद भी जब आवाज ना दबी तो उसे बेरहमी दोनों बाजूओं और एक पैर को जख्मी कर खेतों में फैंक दिया। लोहड़ी का त्योहार होने की वजह से उसे किसी ने देखा नहीं। उसे अस्पताल में ले जाने में देरी हो गई। गैंगरीन के कारण उसके एक पैर को काटना पड़ा।
जब बंत सिंह अस्पताल में चिकित्सक ने बंत सिंह को कहा कि उसकी दोनो बाजूएं और टांग नहीं रही तो वह मुस्कु रता रहा और जिंदगी से कभी ना हार मानने वाला गीत गाता रहा। उसके बाद भी लड़ाई तब तक जारी रखी जब तक उन्हें सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा दिया। इस हादसे के बाद उसकी बेटी का विवाह उससे बेहतर परिवार में हुआ। अब उस महिला के तीन बच्चे हैं। बंत में गजब का सिंगिंग और कविताएं बनाने का टैलेंट, लेकिन वह अनपढ़ है। उसके बाद कई संस्थाओं ने उसे पढ़ाने की पेशकश की। लेकिन उसका कहना था कि वह उस कुल से है, जहां नानक ने भी पढ़ाई करने से मना कर दिया। कहा कि यहां कहावत है कि कल्लू तेरा पुत रब्ब ने पढ़ाया। मतलब संघर्ष ने ही उसे पढ़ाया।
......आतुर
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