गुरुवार, 2 मार्च 2017

मानवीय संवेदनाओं को छुआ छूत की वास्तविकता के पटल पर बखूबी कुरेदना।

22 June 2015 · Solan ·
मानवीय संवेदनाओं को छुआ छूत की वास्तविकता के पटल पर बखूबी कुरेदना। जात पात के घृणित संसार का चित्रण बुरी तरह से झकझोरता है। शरतचंद्र ने ग्रामीण परिवेश से जुडी कहानियां सौ साल पहले लिखी हैं। लेकिन चोट अंतर्मन को करती हैं। हैरत है सार्थकता आज भी है। ऊंच नीच की सोच खास नहीं बदली है। हालाँकि उन्हें विशेष अधिकार मिलें हैं, जीवन स्तर ऊँचा हुआ है। परन्तु समाज में उनके प्रति संकीर्णता नहीं बदली। खासकर ग्रामीण परिवेश जहाँ आज भी बच्चों को मिड्डे मील में अलग अलग बिठाया जाता है। शादी ब्याह, मरण में भेद और भाव का पूरा ख्याल रहता है।अब आईआईटी में ही नाम रोशन करने वाले दलित परिवार से दो भाइयों का किस्सा देख लें। लंबे अरसे से इस विकार पर सोच विचार चल रहा है तो क्या सोच विचार से समस्या का समाधान हो सकता है?.......

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें