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पत्रNकारिता और उपजातियां
चौथे स्तंभ जैसी गरिमापूर्ण ओहदे वाले पत्रकारिता के कंसपेट ने आजकल पत्रकार की कई नई उपजातियां तैयार कर दी हैं। समाज में तेजी से फेल रही यह जड़े खासी मजबूत होने लगी हैं, लेकिन पत्रकारिता का स्तंभ कमजोर। आब्र्जवेशन और विशलेषण से कुछ नई पौध (किस्म)का जिक्र है। यहा रहकर और कुछ सीखा हो या न लेकिन यह जरूर सीख है। हां, इसे कहीं पढ़ा भी है। जिसे बयां इस तरह से किया जा सकता है ............
१-दिखावटी पत्रकार
यह बनना बेहद चतुराई का काम है। पत्रकारिता के क, ख, ग से दूर यह किस्म अपने काम निकालने में माहिर होती है। जनता में स्थापित पत्रकारों की नकल, उनसे संबंद्धता बांधने में इनका कोई सानी नहीं। राजनैतिक पार्टियों, आला अफसरों, लाला लोगों और बड़े उद्योगपतियों को लुभाकर फायदा लेने में कथित पत्रकारिता की गपशप और दिखावे को हत्थकंडे की तरह प्रयोग करके खूब काम निकाला जाता है।
२-बनावटी पत्रकार
क्लबों की छत्र छाया में यह फलते फूलते हैं। प्रेस से इनका दूर का रिश्ता होता है। प्रेस वार्ताओं, कॉकटेल पार्टियों, प्रितिभोजों या अन्य समारोहों में पत्रकारिता से जुड़ी होने की इनकी बनावट देखते ही बनती है। यह पौध टाइमटेबल की बड़ी पक्की है। प्रेस वार्ताओं में सबसे पहले पहुंचना और एक से बढ़कर प्रश्र पूछना कोई इनसे सीखे। फिर हलक तक पेट पूजा करने के बाद इनका काम समाप्त हो जाता है।
३- सजावटी पत्रकार
आज के मॉड जमाने में यह किस्म सबसे अहम है और अन्य से कहीं पावरफुल भी। तो पत्रकारिता का अभिन्न अंग भी। बड़ी कांफ्रेंस या प्रेस के लिए रखे मुख्य समारोहों या कार्यक्रमों में फस्र्ट रो यानी प्रथम पंक्ति में सुसज्ज्ति यह किस्म पत्रकारिता का ज्ञान मानी जाती है। दुनिया भर खासकर विदेशों के पालिटिक्स सिनेरियो को देश की राजनीति के साथ जोड़कर यूं बयां करती हों की सामने वालों के पसीने छूट जाएं। समारोहों में कानूनी पेचिदगियों और उनके निवारण बातें को इस किस्म ने तो मानो घूंट घूंट कर पी रखी हों। यह बात अलग है कि अगले दिन उनके लेख पढऩे को मिले या नहीं। हो सकता है कि सप्ताह माह या साल में कभी पढऩे को न मिले।
लिखावटी पत्रकार
यह पौध काफी घातक है। भ्रष्ट लोगों का मुंह काला कर , समाज में फैली कुरीतियों जो जगजाहिर कर , अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और सरकारी तंत्र की कोताहियों को एक्पोज करके अपने लिए आफत मोल लेती हैं। कार्यालय का अत्याधिक बर्डन, समय पर कार्य निपटाने की संस्थान की जिम्मेवारी को कुशलता से निपटाते निपटाते अकसर बड़ी पार्टियों में जाकर सौहार्दता बढ़ाने में नाकायाब रहती है। सफेदपोशों, चोर उच्चकों के लिए के लिए हर समय गढ्ढा तैयार रखने वाले इस पौध के दुख भी बड़े बड़े हैं। इनकी खबर लेने वाले और ऊपर तक पहुँचाने वाले भी दिन रात ताक में रहते हैं।
क्लबों की छत्र छाया में यह फलते फूलते हैं। प्रेस से इनका दूर का रिश्ता होता है। प्रेस वार्ताओं, कॉकटेल पार्टियों, प्रितिभोजों या अन्य समारोहों में पत्रकारिता से जुड़ी होने की इनकी बनावट देखते ही बनती है। यह पौध टाइमटेबल की बड़ी पक्की है। प्रेस वार्ताओं में सबसे पहले पहुंचना और एक से बढ़कर प्रश्र पूछना कोई इनसे सीखे। फिर हलक तक पेट पूजा करने के बाद इनका काम समाप्त हो जाता है।
३- सजावटी पत्रकार
आज के मॉड जमाने में यह किस्म सबसे अहम है और अन्य से कहीं पावरफुल भी। तो पत्रकारिता का अभिन्न अंग भी। बड़ी कांफ्रेंस या प्रेस के लिए रखे मुख्य समारोहों या कार्यक्रमों में फस्र्ट रो यानी प्रथम पंक्ति में सुसज्ज्ति यह किस्म पत्रकारिता का ज्ञान मानी जाती है। दुनिया भर खासकर विदेशों के पालिटिक्स सिनेरियो को देश की राजनीति के साथ जोड़कर यूं बयां करती हों की सामने वालों के पसीने छूट जाएं। समारोहों में कानूनी पेचिदगियों और उनके निवारण बातें को इस किस्म ने तो मानो घूंट घूंट कर पी रखी हों। यह बात अलग है कि अगले दिन उनके लेख पढऩे को मिले या नहीं। हो सकता है कि सप्ताह माह या साल में कभी पढऩे को न मिले।
लिखावटी पत्रकार
यह पौध काफी घातक है। भ्रष्ट लोगों का मुंह काला कर , समाज में फैली कुरीतियों जो जगजाहिर कर , अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और सरकारी तंत्र की कोताहियों को एक्पोज करके अपने लिए आफत मोल लेती हैं। कार्यालय का अत्याधिक बर्डन, समय पर कार्य निपटाने की संस्थान की जिम्मेवारी को कुशलता से निपटाते निपटाते अकसर बड़ी पार्टियों में जाकर सौहार्दता बढ़ाने में नाकायाब रहती है। सफेदपोशों, चोर उच्चकों के लिए के लिए हर समय गढ्ढा तैयार रखने वाले इस पौध के दुख भी बड़े बड़े हैं। इनकी खबर लेने वाले और ऊपर तक पहुँचाने वाले भी दिन रात ताक में रहते हैं।
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