नेहरू गांधी परिवार की पहली विदेशी बहू शोभा नेहरू का १०९ वर्षों का लंबा जीवन जर्मनी, हंगरी आदि यूरोपीय देशों में हिटलर की अराजकता से लेकर आधुनिक भारत के निर्माण तक का गवाह रहा। ताउम्र संघर्ष में जीने वाली हौसलों से भरी महिला ने अपनी अंतिम सांसों के लिए जगह चुनी तो कसौली। जिसे वह अपनी पति बीके नेहरू की अंतिम निशानी मानती थी। पांच दिसंबर १९०८ में बुडापेस्ट (हंगरी) में यहूदी परिवार में जन्मी इस शख्सियत ने पहले और द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर की अगुवाई में नाजियों अत्याचार, विध्वंसकता देखी और यहूदियों का कत्लेआम। खौफनाक युग से बचते हुए २० वर्ष की उम्र में जब पढ़ाई के लिए इंग्लैंड पहुंची तो नेहरू गांधी परिवार के बीके नेहरू के साथ प्रेम हुआ औरपरिणयसूत्र में बंधकर वह १९३५ में भारत पहुंची। जहां नेहरू परिवार का हिस्सा बनना उनके लिए गर्व की बात थी लेकिन यहां की संस्कृति झटका देने वाली। इसके बावजूद उन्होंने शादी के बाद भारत में अंग्रेजों की हुकूूमत, स्वतंत्रता, विभाजन, महात्मा गांधी, नेहरू जिनसे आधुनिक भारत को शक्ल मिली, वह सब देखा और उनका हिस्सा बनी। उनके बेटे आदित्य कुमार नेहरू के साथ साथ जीवन के अंतिम क्षणों में शोभा नेहरू की देखभाल करने वाले केयर टेकर संजय और धनी राम इस सब का जिक्र करते हुए कहते हैं कि फेयर व्यू हवेली(जहां शोभा ने अंतिम सांस ली) को अपने पति बीके नेहरू की आखिरी निशानी के रूप में मानती रहीं। जिस सुकून की तलाश में वह भटकती रही, आखिरकार वह सुकून और अपनापन उन्हें कसौली में मिला। जहां उन्होंने बुधवार को सुबह सवा पांच बजे अंतिम सांसे लीं। याद्दाश्त की वह धनी थी। सुबह तड़के उठकर चाय के बाद ब्र्रेकफास्ट और ठीक एक बजे लंच। दो बजे वह सोने चली जाती और चार बजे के बाद वह अक्सर पुराने किस्से सुनाया करती थी कि किस तरह उनका परिवार संघर्ष के साये में जीता रहा। वहीं कई अंतराष्ट्रीय मैग्जिन के कॉलम में भी कसौली से जुड़ी इस शख्सियत का संघर्ष उजागर हुआ।
२०१२ में कसौली में डाला था वोट
वर्ष २०१२ में शोभा नेहरू ने हिमाचल विधानसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग कसौली विधानसभा से किया। उन्हें कसौली से बेपनाह मोहब्बत थी। शोभा नेहरू को फौरी नेहरू भी कहा गया। मीडिया से उन्हें काफी परहेज रहा। लेकिन कुछ कालमिस्टस को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि वाशिंगटन में भारतीय राजदूत की पत्नी के रूप में वह कैनेडीज, जांसंस, किसिंगरस और शक्तिशाली अमेरिकी यहूदी लाबी को करीब से देखा और भारत के आधुनिक आकार को भी। भारत को वह अपने पहला घर मानती हैं। द वीक पत्रिका में कल्लोल भट्टाचार्य द्वारा लिखे गए लेखों में उनके संघर्ष भरे जीवन का भी जिक्र है, जहां से शोभा नेहरू बचकर पहुंची।
आधुनिक भारत में कई जिम्मेदार भूमिका निभाई
एक पत्रिका के मुताबिक उनकी आनंद भवन में उनकी पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। वह गांधिज्म से काफी प्रभावित रहीं। नेहरू के लिए समर्थन का एक बड़ा आधार रहे गांधी ने उन्हें भारत के समृद्ध हस्तशिल्प क्षेत्र के बारे में बताया और अधिक जानने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महात्मा के सिद्धांतों का अनुसरन किया। बापू से जुड़े लम्हें उनकी अद्भुत याद्दाश्त के संग्रह का एक हिस्सा हैं। आजादी के बाद भारत पाक विभाजन के समय उन्हें आपातकालीन समिति का सदस्य बनाया गया। उत्तर भारत से पलायन करने वालों को पाकिस्तान भेजने की जिम्मेवारी भी उस समिति के पास रही। जबकि विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब से दिल्ली आई महिलाओं को कढ़ाई और बुनाई कौशल में स्वावलंबी बनाने के लिए शरणार्थी महिला कल्याण संगठन की स्थापना की। जिसके बाद अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड का जन्म हुआ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें