शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

शिव एक साधारण मनुष्य है। लेकिन उनके कर्म उन्हें देवों के देव महादेव में परिवर्तित करते हैं। वह शिवा हैं। महादेव भी और देवों के देव भी। बुराई का नाश करने वाले। तो कभी कामुक प्रेमी। यही नहीं परम नृतक। खूंखार योद्धा। करिश्माई नेता। सर्व शक्तिमान पर कपटहीन। हाजिर जवाब के साथ गजब की सफूर्ति के समानांतर क्रोध। शिव के इतने रूप बखान करने वाली...मेलूहा के मृत्यंजय.... एक शानादार किताब है। फिक्शन ही सही लेकिन शिव के इतने रूप बारिकी से समझाने वाली गजब की लेखनी। १९०० ईसवी पूर्व में आधुनिक परिवेश की झलक। अरसे से इसे पढऩे से गुरेज कर रहा था। लेकिन जब पढऩा शुरू किया तो सच में अद्भुत। सही है रूखा एवं खुरदुरा तिब्बती प्रवासी शिव ही महानायक है।
1900 ईसवी पूर्व, जिसे आधुनिक भारतीय सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से कह जाने की गलती कर बैठते हैं। उस समय के निवासी उस भूमि को मेलूहा के नाम से पुकारते थे। इस साम्राज्य की स्थापना भारत के सबसे महान सम्राट प्रभु श्रीराम ने कई शताब्दियों पूर्व की थी। एक समय गर्वशील रहे इस साम्राज्य एवं इसके सूर्यवंशी शासकों ने कई संकटों का सामना किया था क्योंकि उनकी प्राथमिक नदी पवित्र सरस्वती शनै:-शनै: सूखती हुई मृतप्राय होती जा रही है। पूर्व दिशा से अर्थात चन्द्रवंशियों के साम्राज्य की ओर से वे अत्यंत ही विध्वंसक आतंकवादी आक्रमणों का सामना कर रहे हैं। चकित कर देने वाली एवं दु:खदायी बात यह प्रतीत होती है कि चन्द्रवंशियों ने उन नागाओं से समझौता कर लिया है जो मानव जाति में जाति बहिष्कृत एवं अशुभ जाति थी, किन्तु उनके पास अद्भुत युद्ध कौशल है। सूर्यवंशियों की आस मात्र एक पौराणिक गाथा पर टिकी है कि जब बुराई एक महाकाय रूप धारण कर लेती है, जब ऐसा प्रतीत होता है कि सब कुछ लुप्त हो चुका है कि आपके शत्रु विजय प्राप्त कर लेंगे, तब एक महानायक अवतरित होगा।Ó वह कोई और नहीं शिव है। यह शिव पर रचना-त्रय की प्रथम पुस्तक है। दूसरी पुस्तक सिक्रेट आफ नागा का इंतजार है। ......आतुर

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