सोमवार, 18 जुलाई 2022

देवीदढ़: देवभूमि हिमाचल का जन्‍नत ए कश्‍मीर, दीदार करना न भूलें

देवीदढ़: देवभूमि हिमाचल का जन्‍नत ए कश्‍मीर, दीदार करना न भूलें


देवदारों के दिलकश नजारे से घिरा रमणीय स्‍थल अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता




मंडी। देवीदढ़ हिमाचल का जन्‍नत ए कश्‍मीर है। प्रकृति ने यहां खजाना दिल खोल लुटाया है। देवदारों के दिलकश नजारे से घिरा रमणीय स्‍थल अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।  हिमाचल के मंडी जिले के सराज और गोहर घाटी के बीच यह हिल स्‍टेशन‍ स्‍थि‍त है। 




ट्रैकिंग मार्ग से पहुंचे कमरूनाग और देवीदढ़  

देवीदढ़ दिव्य और सुंदर है। यह पर्यटन स्थल कामरुनाग और शिकारी देवी नामक दो ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को जोड़ता है। ईश्वर का यह मार्ग रोमांच और रोमांच से भरपूर है। देवीदढ़-जंजेहली-शिकारी देवी ट्रैक करीब 15 किलोमीटर है। छोटी और ऊबड़-खाबड़ सड़क खतरनाक है। बेशुमार वनस्पति और जीव आपको प्रकृति के गहरे और अंतरतम केंद्र में ले जाते हैं। शांत हवा की थाप पर पक्षियों को अनोखा संगीत बनाते सुना जा सकता है। देवीदढ़-कमरूनाग का 10 किमी का ट्रैक भी पर्यटकों के लिए मुश्किल है। ये ट्रैक ऑफ रोड हैं। आप अपने वाहन से शिकारी पहुँच सकते हैं (4*4 सुझाव)।



कमरुनाग


3,334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कमरुनाग झील के अलावा झील और मंदिर के लिए जाना जाता है। धौलाधार रेंज और बल्ह घाटी का दृश्य उस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता में इजाफा करता है जहां देव कमरुनाग की झील और पक्की छत वाला मंदिर देवदार के घने जंगलों से घिरा हुआ है। कामरुनाग झील का इस क्षेत्र में अत्यधिक धार्मिक महत्व है। मंडी में सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक, प्रसिद्ध डीदास कमरुनाग देव का मंदिर झील के किनारे स्थित है। इस क्षेत्र में वर्षा भगवान के रूप में जाना जाता है, लोग अक्सर अनुकूल मौसम की स्थिति के लिए बड़ी संख्या में मंदिर के पुजारी से संपर्क करते हैं। हर साल 14 जून को इस जगह पर मेला लगता है। लोग झील में गहने, सिक्के आदि सहित विभिन्न प्रसाद चढ़ाते हैं और ऐसी मान्यता है कि भगवान इंद्र खजाने की रक्षा करते हैं।

शिकारी देवी


3359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, शिकारी देवी मंदिर मंडी जिले की सबसे ऊंची चोटी सिखरी देवी चोटी के ऊपर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर महाभारत के समय से मौजूद है। यह मंदिर शिकारियों की देवी शिकारी देवी को समर्पित है। पुराने दिनों में, क्षेत्र के शिकारी या शिकारी एक सफल शिकार के लिए आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में देवी की पूजा करते थे। इसलिए, मंदिर को इसका नाम मिला, मंदिर एक सपाट सीमेंट वाले चौकोर मंच पर है और देवी को एक पत्थर की छवि के रूप में मूर्तिमान किया गया है। शिकारी देवी मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि इस मंदिर में छत नहीं है क्योंकि इस मंदिर के शीर्ष पर कभी भी कोई छत नहीं बना पाया है। सर्दियों के दौरान मंदिर के अंदर कोई बर्फ नहीं देखी जाती है जब इस मंदिर के आसपास का पूरा क्षेत्र बर्फ से कई फीट तक ढक जाता है।

सर्दियों में ट्रैकिंग ट्रैक प्रतिबंधित हैं



सर्दियों में ये ट्रैक बैन हैं। गर्मी के मौसम में टूरिस्ट गाइड की मदद से ट्रेकिंग की जा सकती है। इन ट्रैकिंग की जीपीएस मैपिंग भी की जा रही है। ताकि पर्यटक भटके नहीं। यहां प्रकृति को कभी भी कम न समझें, वाहन सावधानी से चलाएं, छोटी सी लापरवाही जीवन के लिए खतरनाक होगी।

देवीदढ़ पार्क



मात्र 20 रुपए : देवदारों के बीच में नाव की सवारी करें



पर्यटकों को लुभाने के लिए देवदारों के बीच खुले मैदान में पार्क का विकास किया गया है। जैसे ही आप प्रवेश द्वार पर कदम रखते हैं, कुछ दूरी के बाद एक कृत्रिम झील है। पर्यटक आत्मा को आराम देने वाले वादियों में मात्र बीस रुपये प्रति सवारी के हिसाब से नौका विहार का आनंद ले सकते हैं। झील के बगल में एक ट्री हाउस है। पैदल रास्ते से बच्चों के लिए बने झूले बनते हैं। बच्चों के लिए झूले मुख्य आकर्षण हैं।

 500 रुपए से मिल जाएगा कमरा


आवास के लिए पर्यटन विभाग ने गैम्पलिंग (लक्जरी टेंट) और टेंट की व्यवस्था की है। पर्यटक देवीदढ़ के वन विश्राम गृह में ठहर सकते हैं। होम स्टे भी उपलब्ध है। कमरों की शुरुआत महज 500 रुपये से होती है। जिला उपायुक्त मंडी अरिंदम चौधरी के मुताबिक पर्यटन विभाग इस पर्यटन स्थल को नई मंजिल नई रही योजना से जोड़ने जा रहा है।


👉ऐसे पहुंचे देवीदढ़ 



🚌बस से

बस में मंडी से देवीदढ की दूरी करीब 42 किलोमीटर है। इस पर्यटन स्थल के लिए मंडी-जंजेहली मार्ग पर चैल चौक से आगे लिंक रोड बनाया गया है। यह दूरी बस द्वारा आसानी से तय की जा सकती है। सुंदरनगर, मंडी, चैलचौक से बसें उपलब्ध हैं।


🚆ट्रेन से

देवीदढ़ से निकटतम रेलवे स्टेशन 111 किलोमीटर दूर जोगिंद्रनगर में है। यह एक शॉर्ट लाइन रेलवे स्टेशन है, जो पठानकोट में मुख्य लाइन से जुड़ा है।


🚁हवाई जहाज

देवीदढ़ से निकटतम हवाई अड्डा कुल्लू भुंतर में 94 किलोमीटर की दूरी पर है। सड़क मार्ग से मंडी तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।


गर्मियों में करें फैमिली ट्रिप

देवीगढ़ ट्रेक के रास्ते में जंजैहली, शिकारी देवी, कामरुनाग जैसे लोकप्रिय स्थान भी हैं। देवीदढ़ का मौसम साल भर बहुत ठंडा रहता है। यहां भारी बर्फबारी हो रही है। गर्मी का मौसम यहां आने का उपयुक्त समय है। जब आप यहां आएं तो गर्म कपड़े, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, शिकारी जूते और मिष्ठान्न सामान ले जाएं।






मंगलवार, 3 नवंबर 2020

......तो वहां पहुंच गया जहां बसे हैं छोटी काशी मंडी को सुरक्षा कवच देने वाले देव आदि ब्रह्मा (उत्तरशाल टिहरी)

 

......तो वहां पहुंच गया जहां बसे हैं छोटी काशी मंडी को सुरक्षा कवच देने वाले देव आदि ब्रह्मा (उत्तरशाल टिहरी)


          विवार सबसे खूबसूरत है। अमूमन इसपर सिर्फ अपना हक रहता है। साइकल और पिठ्ठू में समाई दिन भर की खुशियां। जैसे हैडफोन, पावर बैंक, कैमरा, ट्राइपोड, बैटरी, बिछौना, एक किताब, विंड चीटर, काला चश्मा और खाने पीने के थोड़ेे से सामान के साथ ढ़ेरों मनमर्जियां। जाना कहां है? कौन सा रूट चुनना है? ताना बाना शनिवार बुनना होता है। मूड चेंज ना हो तो वही रास्ता, नहीं तो नया। किसी का साथ नहीं। प्रकृति के नजारे लेकर आराम से गुनगुनाते चलते रहना। यहांं के कुछ Tadej Pogačar की तरह रैंक वन के लिए टार्गेट टच करने की ललक तो बिलकुल नहीं। ऐसे ही कछुआ चाल चलते चलते अब तो मंडी के आसपास के पहाड़ों के कई रास्ते कम पड़ने लगे हैं। तो कुछ नए भी दिखने लगे हैै। ऐसेे ही नया ट्रैक तलाशते पहुंचा इलाका उत्तरशाल के टिहरी में, जहां बसे हैं छोटी काशी मंडी को सुरक्षा कवच देने वाले देव आदि ब्रह्मा। 











सच में देव स्थान स्वर्ग से कम नहीं। पगौड़ा शैली में बना मंदिर प्रकृतिक सुंदरता के बीच आलौकिक प्रतीत होता है। हरा भरेे आंगन की शोभा मंदिर के सामने का देवदार और निखारता है। मंदिर की सरंचना ध्यान आकर्षित करती है। नजरें एकटक ठहर जाती हैं। हवाओं के बीच मंदिर के द्वार पर लगी घंटियों से निकलने वाली ध्वनी मानों नकारात्मक उर्जा निकालकर शरीर काेे सकारात्‍‍‍‍‍‍मकता भर रही हो।



मंडी-कटिंडी-कटौला-टिहरी-्आदि ब्रह्मा मंदिर 

01नवंबर 2020 आज मंडी-कटिंडी-कटौला-टिहरी-आदि ब्रह्मा मंदिर तक का फ्रेश ट्रैक किया। साइकल पर करीब 80 किमी सफर (आपडाउन) थकावट वाला रहा। दिन में नौ घंटे साइकल चलानी पड़ी। सुबह छह बजे मंडी से सफर शुरू किया। सोचा आसान होगा। लेकिन, यह ट्रैक अब तक का सबसे टफ साबित हुआ।  मंडी से कटिंडी और कमांद से कटौला तक तो  हवा के साथ साथ घटा के संग संग ओ साथी चल वाली पूरी फिलींग ली। कटौला के बाद मंदिर तक पहुंचते पहुंचते दिन में रात तारे सब नजर आ गए। वैैसे यहां पहुंंने             








पहाड़ का A caffè mocha


करीब 11 बजे कटौला के आगे टिहरी तक की करीब दस किमी की चढ़ाई खत्म हुई और मंडी से 32 किमी का सफर पूरा हुआ। यहां पहुंचते ही शरीर जवाब दे चुका था। टिहरी में एक किनारे ढाबा दिखा। रोका तो भाई को बातों में लिया। थोड़ी जान पहचान होने के बाद भाई ने फैंटने वाली काफी (चाकलेट, काफी, चीनी) यानी A caffè mocha बनाने की रिक्वेस्ट मान ली। पीकर शरीर चार्ज हुआ तो फिर निकल पड़ा, मंजिल की और। अबआठ किमी ही बचा था। तीन किमी दूर जाकर पांच किमी का मंदिर तक पहुंचने के लिए लिंक था। घना जंगल और सड़क की हालत देखकर लौटने को मन किया। लेकिन दिन है कि मानता नहीं गिरते पड़ते, साइकल से उतरते चढ़ते आखिरकार कैचियों को पार करते हुए मंदिर के दर्शन हो गए। 




पगौड़ा शैली का मंदिर, कहा देवता बाहर हैं







एक बजे के करीब मंंदि‍र को सामने देखकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मंदिर काफी पुराना है। लकड़ी और स्लेट पत्थर से निर्मित यह मंदिर पहाड़ी पेगोडा शैली में बना है। मंदिर के सामने खुला मैदान है और देवदार का एक पुराना वृक्ष है। वृक्ष के साथ एक गेट है, जहां घंटिया हवा के साथ साथ खुद ध्वनी कर रही हैं। मैदान में कुछ लोग बैठे हुए थे। बातचीत की तो सभी कहने लगे कि तुम्हें बुलावा था। तभी यहां पहुंचे हो। आज देवता(आदि ब्र्हमा) बाहर हैं। मैं भी लोगों की टोली में शामिल हुआ। वहां भरपूर प्यार मिला। पूछने पर बताया कि एक यहां मंदिर का भी निर्माण किया गया है वो भी काफी सुंदर है। मन्दिर के आस पास गिने चुने ही मकान हैं जिनमे से अधिकतर लकड़ी से निर्मित हैं। लोगों ने कहा कि यहां सर्दियों में खूब बर्फ गिरती है। इसी बीच मंदिर में दर्शन करने के बाद देव ध्वनी के बीच देव नृत्य भी शुरू हुआ और कुछ देर के लिए वहीं खोया रहा।


बालक राम के घर जैस स्वादिष्ट खाना कहां



थोड़ी देर के बाद गांव के कुछ लोग पास में आए और बोले सुबह से चले हो कुछ खाया है। मैने कहा ना। तो बालकराम जी ने मुझे घर आने का न्योता दिया। थोड़े संकोच के बाद मैं भी उनके साथ चल पड़ा। मिट़टी के स्लेटनुमा मकान में उन्होंने शिमला मिर्च, मक्खन और दो चपातियों के साथ दूध परोसा। खाना बेहद स्वादिष्ट था, लेकिन उससे अधिक उनका मुझ जैसे अंजान के प्रति स्नेह था। करीब अढ़ाई बजे सभी से रूखस्त लेने के बाद वापसी का सफर शुरू किया। कोशिश थी की रात होने से पहले मंडी पहुंच जाऊं। वैसा ही हुआ शाम करीब साढ़े पांच बजे तक वापिस मंडी जैसे तैसे पहुंच ही गया। 


मंदिर के बारे में

उत्तरशाल मंडी का आदी पुर्खा मंदिर हिमाचल प्रदेश में भगवान ब्रह्मा को समर्पित एकऔर मंदिर है। मंदिर के सामने पराशर हिल है। ऐसा माना जाता है कि टिहरी और खोखन गांव कुल्लू रियासत से थे और दोनों गांवों के मूल निवासी खोखन ब्रह्मा की पूजा करते थे। हालांकि, मंडी और कुल्लू के बीच एक क्षेत्रीय विवाद उत्पन्न हुआ और इसके परिणामस्वरूप इन दो गांवों को अलग किया गया। टिहरी के मूल निवासी ने अपना आदी ब्रह्मा मंदिर रखने का फैसला किया और उन्होंने इसे आदी पुर्खा मंदिर नाम दिया। नया मंदिर न केवल खोखन मंदिर के साथ अपना नाम साझा करता है बल्कि वास्तुशिल्प शैली भी साझा करता है।  आदी ब्रह्मा  शिवरात्रि में मंडी शहर में कार बांधते हैं ऐसी मान्यता है क‌ि यह सुरक्षा कवच आपदाओं से बचाते हैं।

कैसे पहुंचे

आदि ब्रह्मा मंदिर टिहरी पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक कुल्लू के बजौरा से तो दूसरा मंडी कमांद कटौला होते हुए। मंडी से आदि ब्रह्मा मंदिर तक का रास्ता करीब चालिस किमी पड़ता है। मंडी से कटिंढी दस किमी तक खड़ी चढ़ाई है। आगे कमांद तक करीब चार किमी डाउन और फिर क‌टौला तक का रास्ता हलके अप डाउन वाला है। क‌टौला तक आप करीब 22 किमी कवर कर लेते हो। आगे बजौरा मार्ग पर ‌टिहरी तक करीब दस किमी का रास्ता है। यह रास्ता कठिन चढ़ाई वाला है। बीच में पराशर का ‌लिंक भी आता है। टिहरी से करीब दो किमी आगे एक कच्चा लिंक कटता है। य‌‌‌हां बोर्ड तो पांच किमी का लगा है, लकिन एमआईफिट (जीपीस) में मंदिर तक की चढ़ाई छह किमी दर्शाती है। यह रास्ता बेहद खतरनाक है। घना जंगल, धूल मिट्टी , पत्थर, ऊंचाई, चढ़ाई, गहरी ढांक सब है। बारिश में यह रास्ता कवर करना आसान नहीं है। फोर बाइ फोर से ही यहां तक पहुंचा जा सकता है। हालां‌कि साफ दिन में आप बाइक, छोटे वाहन से भी सफर कर सकते हैं। लेकिन छोटा वाहन यहां के लिए उपयुक्त नहीं है। गर्मियों में भी यहां सर्द हवाएं चलती हैं। किसी भी मौसम में आप यहां जा रहे हों तो गर्म कपड़े डालना ना भूलें और खाने पीने का सामरन भी।



सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

💕💕Your taste is in every sip of this coffee

Sunday 9 feb 2020 on the way to rewalsor
It is your love that tastes in the taste of coffee, which drags me on a journey of sixty kilometers. Each pedal of the bicycle brings you reminiscent of the smell of your coffee beans. Its Tso Pema (rewalsor), Where I hold my breath.


view of rewalsor 


I hold the espresso macchiato in my hand in the window where Padmasambhava is sitting in meditation on the other side of the lake. Then I also get absorbed in the kick of coffee.

  
Emahos maccheato 



After an interval, after reaching out from the dip of memories, I reach again before the sun sets, where the journey of life has stopped.

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

मंडी-कांगणीधार-मझवाड़-कोटमोरस-धुआंदेवी ट्रैक की बात ही अलग है

इस मौसम में मंडी-कांगणीधार-मझवाड़-कोटमोरस-धुआंदेवी ट्रैक की बात ही अलग है। घने जंगल। हरे पत्तों से लदे विशालकाय पेड़ और उनमें से छनकर निकलती ताजा हवा मानो संगीत सुना रही हो। पक्षियों की चहचहाहट प्रकृति के इस संगीत को लयबद्ध करने में कसर नहीं छोड़ती। साइकिल चलाते वक्त मेरे कानों में हमेशा ब्लूटूथ या बड़े हैडफोन रहते हैं। परंतु इस ट्रैक में नहीं। सच में प्रकृति ने तसल्ली से इन पहाड़ों की रचना की है। रविवार को मूड था कि कांगणीधार से जाकर वापिस आ जाऊंगा। कांगणी हैलीपेड पर कुछ दोस्त भी मिल गए। वहां धुंध ने पहाड़ों के बीच रास्ता तैयार किया था।
सोचा मझवाड़ वाले रास्ते से होते हुए सौली खड्ड उतर जाऊंगा। लेकिन प्रकृति और मौसम मेहरबान था। साथी आगे निकल गए और धुंध से लिपटे रास्ते में हम भी मजे से चलते रहे। कुछ दूरी पर धुंध की चादर हटी और ताजगी भरी हरियाली ने रूह और दिमाग को वश में कर लिया। इसी बीच पिछली सर्दियों की याद आ गई, कुछ ऐसा ही खुशगवार मौसम था जब हम धुआंदेवी ट्रैक नजदीक से चूक गए थे। दरअसल किसी दोस्त की साइकल खराब हो गई थी, इसलिए वापिस आना पड़ा। तभी विचार कौंधा आज क्यों नहीं? बस फिर क्या, सनक आ गई, धुअंदेवी तक पहुंचने की। इस हसरत को लिए हम अकेेले ही निकल पड़े। दोस्त भी पीछे छूट गए पर साइकल नहीं।


 करीब 50 किमी का ट्रैक अकेले किया। पर यकीन मानिए पूरे सफर में एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगा कि आपका नेचर से कनेक्शन टूटा हो। हालांकि चढ़ाई ने शरीर से धुआं निकाल दिया। कुछ चढ़ाई सत्तर से अस्सी डिग्री वाली थी।


 वहां शरीर से ऐसी भाप निकल रही थी कि जैसे रोडियेटर गर्म होने पर कार के बोनट से भाप निकलती हो। जैसे तैसे मां के दरबार तक पहुंचे। सच में बेहद ही खूबसूरत स्थान पर मां धुआंदेवी विराजमान है। करीब एक घंटे तक वहां रूका, लेकिन वहां से आने का मन नहीं कर रहा था।

सुबह साढ़े छह बजे से लेकर दोपहर तीन बजे तक इन्हीं वादियों का लुत्फ उठाया और + वाइब लेकर वापिस लौट आए।

रविवार, 15 सितंबर 2019

bicycle trekkers



Mandi-bari gumanu-bariara-sai galu-trokada devi-talihar- mandi bicycle touring was not new to us. This track is about 40 kilometers long, with a lot of ups and downs.



But this time, just pedaling the bicycle did not work. We had to do something else, by becoming bicycle trekkers. Our Motivator and Cycle Guru Dipu Bhai said that there will be about 400 stairs and some walking straight down the nose. Then you will see the ancient (temple) form of Lord Shiva. Very few people know this place.The voltage of my brain increased. Just had to do it. Between yes and no, everyone took the cycle down to the side of the road and walked on foot to have a glimpse of God.







The two companions went right and we wandered to the other end.





 After contacting the phone, we had to come back as much as we had landed. Then Bhole Baba appeared. Dhaniyara is this sacred place at the end of the forest and along the banks of Bias.













After bowing there and resting for some time, again reached the top road and covered the track.







 But really Cycling and hiking is the best combination to make Sunday fun more thrilling.




रविवार, 7 जनवरी 2018

..... एक प्रिय मित्र को स्नेहवाद


जन्नत है यह। प्रकृति मानो पूरे यौवन से निखरी है। घने पेड़ों से लदी कामुक पर्वतश्रृंखलाएं बाहें फैलाए बर्बस अपने सौंदर्य के मोहपाश में बांध रही है। सूरज की लालिमा तपिश लिए औंस की परत को पिघला चुकी हैं। बंूद बूंद पानी से नहाकर कुदरत का नजारा ताजी हरियाली की चादर ओढ़कर शांत है। निशब्द।......क्षणिका
..... एक प्रिय मित्र को स्नेहवाद। सृष्टि के अदभुत नजारे की झलक का जरिया बनने के लिए। आखिरकार खूब टालमटौल के बाद रविवार यहां जाना हो ही गया। वैसे भी पहाडिय़ों को मापने का सनकपना आसानी से नहीं छूटने वाला। तो चैलचौक से करीब बीस किलोमीटर की दूरी पर पहुंच गए सरोआ। उधर, जानना चाहा तो स्थानीय लोगों को मालूम नहीं कि सुंदर स्थली का नाम सरोआ क्यों पड़ा। यहां एक प्राचीन जालपा मंदिर भी है। कहते हैं कि जालपा माता पानी से उत्पन्न हुई है। सर मतलब तालाब, सरोवर या स्रोत हो सकता है इसकी कारण नाम सरोआ हो। खैर यह एक वर्जिन ललनटाप स्टेशन है। बेहतर भी है। बेढंगी और शोरोगुल की सोच से दूर। लेकिन सच में बसने के मन करता है। एक छोटा सा लकड़ी की काटेज। खूब तरह तरह किताबें, हरी भूरी काफी, आला किस्मों की चाय और कुकिंग के लिए बड़ा कीचन और खेतों से निकलती ताजा सब्जियां और उनका साथ