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कल करीब 5 बजे ज्योति ने what's app पर यह फ़ोटो भेजा। केया की बस्ते के बोझ के तले दबी नींद को देखकर मन व्याकुल हो उठा| उसे इस तरह देख बचपन आँखों के सामने था! लेकिन लगा की बस्ते का बोझ उस समय शायद इससे कहीं कम! यादों के बीच अचानक मन माँ से बात करने को हुआ। फ़ोन करके सबसे पहले केया के बारे पूछा। जवाब मिला स्चूल का बर्डन काफी है। केया की डे रूटीन के बारे में जाना तो संन्न रह गया। सुबह 6 बजे उठना 7.30 तक रेडी होकर स्कूल बस पकड़ना और शाम को 4 बजे वापसी। असाइनमेंट्स, होम वर्क, ड्राइंग्स आदि की चिन्ता में 5 बजे बस्ते का खेल शुरू। रात को मुश्किल से काम पूरा होना। नहीं हुआ तो सुबह काम पूरा करने की टेंशन की नींद। छोटी जिंदगी और नन्हे दिमाग पर बस्ते का इतना बोझ एक गहरी खाई की तरह महसूस हुआ। जिसमे ज्ञान का उजाला कम और बर्डन रूपी अँधेरा ज्यादा। यह उम्र खेलने कूदने बचपन में डूबने की है और हमारे बच्चेे कहाँ?
..........मैंने कहा बच्चों को प्रश्न सिखाएं उत्तर नहीं!
पर हमारे सिस्टम में यह कहाँ.....
कल करीब 5 बजे ज्योति ने what's app पर यह फ़ोटो भेजा। केया की बस्ते के बोझ के तले दबी नींद को देखकर मन व्याकुल हो उठा| उसे इस तरह देख बचपन आँखों के सामने था! लेकिन लगा की बस्ते का बोझ उस समय शायद इससे कहीं कम! यादों के बीच अचानक मन माँ से बात करने को हुआ। फ़ोन करके सबसे पहले केया के बारे पूछा। जवाब मिला स्चूल का बर्डन काफी है। केया की डे रूटीन के बारे में जाना तो संन्न रह गया। सुबह 6 बजे उठना 7.30 तक रेडी होकर स्कूल बस पकड़ना और शाम को 4 बजे वापसी। असाइनमेंट्स, होम वर्क, ड्राइंग्स आदि की चिन्ता में 5 बजे बस्ते का खेल शुरू। रात को मुश्किल से काम पूरा होना। नहीं हुआ तो सुबह काम पूरा करने की टेंशन की नींद। छोटी जिंदगी और नन्हे दिमाग पर बस्ते का इतना बोझ एक गहरी खाई की तरह महसूस हुआ। जिसमे ज्ञान का उजाला कम और बर्डन रूपी अँधेरा ज्यादा। यह उम्र खेलने कूदने बचपन में डूबने की है और हमारे बच्चेे कहाँ?
..........मैंने कहा बच्चों को प्रश्न सिखाएं उत्तर नहीं!
पर हमारे सिस्टम में यह कहाँ.....
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